भेड़िया और चरवाहा लड़का
परिचय
हिमालय की तलहटी में, जहाँ हरी-भरी घाटियाँ और बर्फीले पहाड़ एक-दूसरे से मिलते थे, एक छोटा-सा गाँव बसा था, जिसका नाम था सूरजपुर। इस गाँव में चारों ओर हरियाली थी, फूलों की महक हवा में बिखरी रहती थी, और पास की नदी का कल-कल करता पानी गाँव वालों के लिए संगीत की तरह था। गाँव के लोग मेहनती थे, और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत पशुपालन और खेती था। गाँव के बाहर एक विशाल चरागाह था, जहाँ भेड़ें और बकरियाँ चरती थीं। इन्हीं भेड़ों की देखभाल का जिम्मा एक युवा लड़के, चंदर, के कंधों पर था।
चंदर एक चंचल और शरारती लड़का था। उसकी उम्र मुश्किल से बारह साल की थी, लेकिन उसकी आवाज़ इतनी बुलंद थी कि वह दूर तक गूँजती थी। वह गाँव का सबसे तेज़ दौड़ने वाला लड़का था और हमेशा अपने दोस्तों के बीच हँसी-मजाक का केंद्र रहता था। उसकी शरारतें गाँव वालों को कभी हँसाती थीं, तो कभी परेशान करती थीं। लेकिन चंदर का मन साफ था, और वह अपनी भेड़ों से बहुत प्यार करता था। हर सुबह, वह अपनी बाँसुरी की मधुर धुन बजाते हुए भेड़ों को चरागाह की ओर ले जाता और दिनभर उनकी देखभाल करता।
कहानी की शुरुआत
एक दिन, जब सूरज अपनी पूरी शक्ति से चमक रहा था और चरागाह में भेड़ें शांति से घास चर रही थीं, चंदर को कुछ शरारत सूझी। वह चरागाह के एक ऊँचे टीले पर चढ़ गया, जहाँ से पूरा गाँव दिखाई देता था। उसने अपनी बाँसुरी को एक तरफ रखा और जोर से चिल्लाया, "भेड़िया! भेड़िया आ गया! बचाओ! मेरी भेड़ों को बचाओ!"
उसकी आवाज़ हवा में गूँज उठी और गाँव तक पहुँच गई। गाँव वाले, जो अपने खेतों में काम कर रहे थे या घरों में भोजन बना रहे थे, तुरंत अपने काम छोड़कर दौड़ पड़े। कुछ ने लाठियाँ उठाईं, कुछ ने कुल्हाड़ियाँ, और कुछ ने बस अपनी हिम्मत ही साथ ली। वे चरागाह की ओर भागे, यह सोचकर कि चंदर और उसकी भेड़ें खतरे में हैं।
जब गाँव वाले हाँफते-हाँफते चरागाह पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि चंदर एक पेड़ के नीचे बैठा हँस रहा था। भेड़ें शांति से चर रही थीं, और कहीं कोई भेड़िया नहीं था। गाँव वालों ने चंदर से पूछा, "कहाँ है भेड़िया? हम इतनी दूर से दौड़कर आए हैं!"
चंदर अपनी हँसी रोकते हुए बोला, "अरे, मैं तो बस मजाक कर रहा था! कोई भेड़िया नहीं है। देखो, तुम सब कितनी जल्दी दौड़कर आ गए!"
गाँव वाले पहले तो गुस्सा हुए, लेकिन फिर चंदर की मासूमियत देखकर हँसने लगे। उन्होंने उसे हल्की-सी डाँट लगाई और अपने काम पर लौट गए। चंदर को यह मजाक इतना अच्छा लगा कि उसने सोचा, "यह तो बड़ा मज़ेदार खेल है!"
बार-बार की शरारत
अगले कुछ दिनों में चंदर ने यह मजाक दोहराया। हर बार वह "भेड़िया! भेड़िया!" चिल्लाता, और गाँव वाले दौड़कर आते। हर बार उन्हें चंदर हँसता हुआ और भेड़ें सुरक्षित चरती हुई मिलतीं। गाँव वालों का धैर्य धीरे-धीरे जवाब देने लगा। पहले तो वे हँसकर टाल देते थे, लेकिन अब उनकी भौहें तनने लगीं।
गाँव के बुजुर्ग, रामू काका, ने एक दिन चंदर को समझाया, "बेटा, झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है। अगर तुम बार-बार ऐसा मजाक करोगे, तो एक दिन जब सचमुच खतरा होगा, कोई तुम्हारी मदद के लिए नहीं आएगा।"
चंदर ने रामू काका की बात सुनी, लेकिन उसका शरारती मन मानने को तैयार नहीं था। उसने सोचा, "रामू काका तो बस डराने की कोशिश कर रहे हैं। गाँव वाले तो हमेशा मेरी मदद के लिए आएँगे।"
असली खतरा
एक दिन, जब सूरज ढल रहा था और आसमान नारंगी रंग में रंगा हुआ था, चंदर अपनी भेड़ों को चरागाह से वापस लाने की तैयारी कर रहा था। तभी, झाड़ियों के पीछे से एक जोरदार गुर्राहट सुनाई दी। चंदर ने पलटकर देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। एक विशाल भेड़िया, जिसके दाँत चमक रहे थे और आँखें आग की तरह जल रही थीं, धीरे-धीरे चरागाह की ओर बढ़ रहा था। उसकी भेड़ें डर के मारे इधर-उधर भागने लगीं।
चंदर ने अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया, "भेड़िया! भेड़िया आ गया! सचमुच का भेड़िया! बचाओ!"
उसकी आवाज़ गाँव तक पहुँची, लेकिन इस बार कोई नहीं आया। गाँव वाले अपने घरों में बैठे सोच रहे थे, "फिर वही चंदर का मजाक होगा। हम हर बार थोड़े ही दौड़कर जाएँगे।"
चंदर ने फिर चिल्लाया, लेकिन उसकी आवाज़ हवा में खो गई। भेड़िया अब और करीब आ चुका था। चंदर ने हिम्मत जुटाई और अपनी लाठी उठाकर भेड़िये की ओर दौड़ा। उसने भेड़िये को डराने की कोशिश की, लेकिन भेड़िया उससे कहीं ज्यादा ताकतवर था। आखिरकार, चंदर की कुछ भेड़ें भेड़िये का शिकार बन गईं, और बाकी डर के मारे जंगल की ओर भाग गईं।
सबक
उस रात, जब चंदर गाँव लौटा, उसका चेहरा उदास था। उसकी आँखों में आँसू थे, और उसका दिल पछतावे से भरा था। गाँव वालों ने जब उसकी हालत देखी, तो उन्हें सारी बात समझ में आ गई। रामू काका ने उसे पास बुलाया और कहा, "बेटा, मैंने तुम्हें पहले ही कहा था। झूठ बोलने से लोगों का भरोसा टूट जाता है। जब तुमने बार-बार मजाक किया, तो हमने सोचा कि इस बार भी तुम झूठ बोल रहे हो।"
चंदर ने सिर झुकाकर कहा, "मुझे माफ कर दीजिए, काका। मैंने नहीं सोचा था कि मेरा मजाक इतना बड़ा नुकसान कर देगा।"
उस दिन के बाद, चंदर ने कभी झूठ नहीं बोला। उसने गाँव वालों का भरोसा फिर से जीता और अपनी भेड़ों की देखभाल पहले से भी ज्यादा सावधानी से करने लगा। गाँव वालों ने भी उसे माफ कर दिया, क्योंकि वे जानते थे कि चंदर का दिल साफ है और उसने अपनी गलती से सबक सीख लिया है।
निष्कर्ष
यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ बोलने से न केवल दूसरों का भरोसा टूटता है, बल्कि यह हमें मुश्किल में भी डाल सकता है। सच्चाई और ईमानदारी ही वह नींव है, जिस पर रिश्ते और विश्वास टिके रहते हैं। चंदर की तरह, हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और हमेशा सच का साथ देना चाहिए।
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