मोहन भागवत जी और RSS की 100 वर्षों की यात्रा
हिंदू राष्ट्र, सामाजिक न्याय और भारत का विष्वगुरु बनने का दृष्टिकोण
RSS की स्थापना और इतिहास
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने पिछले सौ वर्षों में भारतीय समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। संघ का उद्देश्य केवल सामाजिक संगठन या सेवा संस्था होना नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक जागरूकता, नैतिक मूल्यों और शिक्षा के माध्यम से समाज को मजबूत बनाना है। RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने हाल ही में संघ की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष व्याख्यान श्रृंखला में यह स्पष्ट किया कि भारतीय समाज की सबसे बड़ी ताकत उसकी सांस्कृतिक एकता और साझा DNA है। उन्होंने कहा कि विभाजित भारत में रहने वाले सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र, धर्म या जाति से हों, सांस्कृतिक दृष्टि से जुड़े हुए हैं, और यही साझा DNA देश को एकता और शक्ति प्रदान करता है।
मोहन भागवत जी का दृष्टिकोण
भागवत जी ने यह भी कहा कि आज का समय भारत के लिए विष्वगुरु बनने का है। उनके अनुसार, भारत न केवल अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाना चाहिए, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर शिक्षा, योग, आयुर्वेद और नैतिक मूल्यों के माध्यम से नेतृत्व भी देना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत का वैश्विक नेतृत्व केवल सत्ता के माध्यम से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक मूल्य आधारित दृष्टिकोण से होना चाहिए।
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा
भागवत जी ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र का मतलब केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसका असली उद्देश्य समाज में समानता, न्याय और सभी के लिए सम्मान सुनिश्चित करना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का केंद्र सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य है और यह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है। उनका कहना था कि किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव है, जब उसकी जड़ें सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक मूल्यों से मजबूत हों।
युवा और शिक्षा
मोहन भागवत जी ने अपने भाषण में युवा पीढ़ी की भूमिका पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज के युवा भारत के भविष्य हैं और उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों, सामाजिक जिम्मेदारियों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तैयार करना आवश्यक है। RSS ने हमेशा युवा नेतृत्व, शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान दिया है, ताकि युवा न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में सफल हों, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी सकारात्मक योगदान कर सकें। उन्होंने बताया कि संगठन के 100 वर्षों की यात्रा में यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम, शिक्षा और नेतृत्व विकास के माध्यम से समाज में नैतिकता और जिम्मेदारी को बढ़ावा मिला है।
सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण
भागवत जी ने यह भी बताया कि RSS ने समाज में सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि संघ ने हमेशा गरीबों, वंचितों और पिछड़े वर्गों के जीवन में सुधार लाने के लिए प्रयास किए हैं। प्राकृतिक आपदाओं, स्वास्थ्य संकट और शिक्षा के क्षेत्र में संघ की मदद ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है। उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण केवल संगठन के सदस्य नहीं बल्कि पूरे समाज और देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
संवाद और सहयोग
RSS की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया। इसमें न्यायाधीश, सैन्य अधिकारी, कूटनीतिक प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और शैक्षिक संस्थानों के प्रमुख शामिल थे। मोहन भागवत जी ने कहा कि यह पहल केवल संघ के इतिहास को याद करने के लिए नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के साथ संवाद और सहयोग बढ़ाने के लिए भी है। उन्होंने कहा कि संवाद और सहयोग ही समाज में स्थायी परिवर्तन और विकास के लिए आवश्यक हैं।
सांस्कृतिक एकता और वैश्विक नेतृत्व
भागवत जी ने भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता और एकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है। विभिन्न भाषाओं, धर्मों और सांस्कृतिक परंपराओं के बावजूद, भारतीय समाज की साझा सांस्कृतिक पहचान ही उसे मजबूत बनाती है। उन्होंने कहा कि विभाजन और क्षेत्रीय भिन्नताओं के बावजूद, साझा सांस्कृतिक DNA ही राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति है। RSS का दृष्टिकोण भविष्य के लिए केवल संगठन की उपलब्धियों को याद करने तक सीमित नहीं है। संघ अब आगे शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और युवा नेतृत्व के क्षेत्र में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगा।
निष्कर्ष
संक्षेप में, RSS और मोहन भागवत जी का दृष्टिकोण सांस्कृतिक एकता, सामाजिक न्याय, शिक्षा, युवा नेतृत्व और वैश्विक नेतृत्व के चारों ओर केंद्रित है। हिंदू राष्ट्र का उद्देश्य सत्ता नहीं, बल्कि समाज में समानता और न्याय स्थापित करना है। यह दृष्टिकोण न केवल संघ के सदस्यों के लिए प्रेरणा है बल्कि पूरे समाज और देश के लिए सकारात्मक दिशा और मार्गदर्शन प्रदान करता है। RSS की 100वीं वर्षगांठ हमें यह संदेश देती है कि सांस्कृतिक DNA, नैतिक मूल्य और शिक्षा ही किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत हैं और इन्हें संरक्षित करना और फैलाना ही आज की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
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