भारत के उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 का आयोजन 9 सितंबर 2025 को संसद भवन, नई दिल्ली में हुआ। यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद, उपराष्ट्रपति का चयन किया जाता है। इस बार का चुनाव इसलिए विशेष रहा क्योंकि यह पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा स्वास्थ्य कारणों से पद से इस्तीफा देने के बाद हो रहा था। उनकी विदाई ने राजनीति में एक खालीपन पैदा किया, जिसे भरने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार बनाया, जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा। मतदान प्रक्रिया सुबह 10 बजे शुरू हुई और शाम 5 बजे तक चली। इसमें कुल 788 सांसदों में से 766 ने मतदान किया, जो लगभग 96 प्रतिशत का रिकॉर्ड मतदान रहा। मतदान समाप्त होते ही मतगणना शुरू हुई और उसी दिन परिणाम घोषित कर दिए गए। एनडीए उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन ने 452 मतों के साथ विजय प्राप्त की जबकि बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 मत मिले। कुछ सांसदों ने मतदान से दूरी भी बनाई, जिनमें बीजू जनता दल (BJD), भारत राष्ट्र समिति (BRS), और शिरोमणि अकाली दल (SAD) शामिल हैं।
उपराष्ट्रपति का पद केवल एक औपचारिक भूमिका नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक अत्यंत प्रभावशाली पद है, जो राज्यसभा के सभापति का दायित्व निभाता है। राज्यसभा में विधायी प्रक्रिया, बहस, और सरकार व विपक्ष के बीच समन्वय में उपराष्ट्रपति की भूमिका केंद्रीय होती है। यही कारण है कि इस पद के लिए चुनाव केवल संख्याओं की लड़ाई नहीं बल्कि रणनीतिक राजनीतिक समीकरणों का परिणाम होता है। इस बार का चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि यह आगामी आम चुनावों से पहले राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करने का एक मौका बन गया। एनडीए ने अपने बहुमत का उपयोग करते हुए अपने उम्मीदवार को आगे बढ़ाया, जबकि विपक्ष ने क्रॉस वोटिंग के माध्यम से सत्ता पक्ष को चुनौती देने की कोशिश की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मतदान से पहले अपने संबोधन में कहा कि यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए इसे लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक बताया। मतदान के दिन संसद भवन में भारी सुरक्षा व्यवस्था की गई। मतदान स्थल पर पहचान प्रक्रिया, पारदर्शिता, और चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन किया गया। सांसदों ने बारी-बारी से मतदान किया और पूरी प्रक्रिया सुचारु रूप से संपन्न हुई।
सी. पी. राधाकृष्णन का राजनीतिक करियर काफी लंबा रहा है। वे पूर्व में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं और महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्य कर चुके हैं। उनके समर्थक उन्हें एक अनुभवी और संतुलित नेतृत्वकर्ता के रूप में देखते हैं। वहीं विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ने न्यायपालिका में अपनी पहचान बनाई थी और उन्हें एक निष्पक्ष, ईमानदार और विधिक मामलों में दक्ष व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया। दोनों उम्मीदवारों ने अपने-अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए, लेकिन अंततः संख्या बल ने सत्ता पक्ष को जीत दिलाई।
मतगणना के बाद राधाकृष्णन ने कहा कि यह जीत केवल व्यक्तिगत नहीं है बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे की जीत है। उन्होंने सभी सांसदों का धन्यवाद दिया और कहा कि वे राज्यसभा की गरिमा बनाए रखते हुए सभी दलों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करेंगे। दूसरी ओर, विपक्ष ने अपनी हार स्वीकार की लेकिन लोकतंत्र में भागीदारी की महत्ता पर बल दिया। राहुल गांधी ने कहा कि लोकतंत्र में हार-जीत से अधिक महत्वपूर्ण है कि हर नागरिक और सांसद को अपनी राय देने का अधिकार मिले।
इस चुनाव का प्रभाव केवल संसद तक सीमित नहीं है। यह चुनाव आगामी राजनीतिक घटनाक्रम, गठबंधन की रणनीति, और चुनावी समीकरणों पर असर डालेगा। एनडीए की जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान सरकार के पास संसद में मजबूत समर्थन है। वहीं विपक्ष को आत्ममंथन करने की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में यह चुनाव भारतीय राजनीति की दिशा तय करेगा और कई नए गठबंधन बनने की संभावना है।
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है और इसमें वे राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते हैं। उन्हें संविधान, लोकतंत्र, और विधायी प्रक्रियाओं की रक्षा का दायित्व निभाना होता है। इस दृष्टि से सी. पी. राधाकृष्णन के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। उन्हें न केवल विधायी कार्यों को सुव्यवस्थित करना होगा, बल्कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संवाद स्थापित कर संसद की कार्यक्षमता बढ़ानी होगी।
इसके अलावा, उपराष्ट्रपति का पद अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत का प्रतिनिधित्व करता है। वे उच्च स्तरीय बैठकों, विदेश नीति से जुड़े कार्यक्रमों, और अन्य देशों के नेताओं से संवाद में भाग लेते हैं। अतः उनके व्यक्तित्व, दृष्टिकोण और कार्यशैली का देश की छवि पर प्रभाव पड़ता है। राधाकृष्णन की जीत से एनडीए को विदेश नीति में भी एक स्थिर चेहरा मिलेगा।
इस चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर यह दिखाया कि भारतीय लोकतंत्र मजबूत है और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद सभी दल चुनाव प्रक्रिया का सम्मान करते हैं। मतदान प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही, किसी प्रकार की हिंसा या गड़बड़ी की कोई खबर नहीं आई। चुनाव आयोग ने सुरक्षा, पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की। मीडिया ने पूरे दिन इस चुनाव को लेकर व्यापक कवरेज दी और देशभर में नागरिकों ने इसे गंभीरता से लिया।
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