दीपावली-कार्यक्रम : परम्परा, महत्व एवं इस वर्ष का मुहूर्त
१. दीपावली का ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्व
दीपावली शब्द संस्कृत के दीप (दीया/प्रकाश) तथा आवली (पंक्ति) से बना है — अर्थात् दीयों की पंक्तियाँ। हिन्दू पौराणिक कथाओं एवं लोक-विश्वासों में यह पर्व अनेक अर्थ और कहानियाँ समेटे हुए है:
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उत्तर भारत में इसे भगवान राम के कैल युद्ध विजय एवं अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
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दक्षिण भारत व कुछ अन्य क्षेत्रों में इसे कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर के वध की कथा से जोड़कर ‘नरक चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है।
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व्यापार-व्यवसाय में यह नए वर्ष के आरंभ, लेखा-पुस्तकों की पूजा और समृद्धि की कामना का दिन भी माना जाता है।
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धर्मशास्त्रों में, विशेषकर अन्धकार (अज्ञान) पर प्रकाश (ज्ञान) की विजय का प्रतीक भी है — जहाँ बाहरी दीये जलाए जाते हैं, वहीं आंतरिक अज्ञान के अँधेरे को दूर करने का संकेत भी है।
इस प्रकार, दीपावली केवल बाहरी उल्लास नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति, सामाजिक मेल-जोल और आर्थिक समृद्धि का उत्सव है।
२. दीपावली-पंचकल (पांच दिवसीय क्रम)
आज ज़्यादातर भारत में दीपावली लगभग पाँच दिनों तक मनाई जाती है — प्रत्येक दिन का अपना विशेष अर्थ और अनुष्ठान है। 2025 में इन पाँच दिनों का क्रम इस प्रकार है:
| क्रम | दिन | तिथि (2025) | मुख्य अनुष्ठान व अर्थ |
|---|---|---|---|
| 1 | धनतेरस | 18 अक्टूबर | धन, स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना: धातु-वस्तुएँ, बर्तन आदि खरीदे जाते हैं। |
| 2 | छोटी दीपावली / नरक चतुर्दशी | 19 अक्टूबर | नकारात्मकता व अज्ञान के विनाश का प्रतीक: प्रातः स्नान, हल्की आतिशबाजी व दीपों की तैयारी। |
| 3 | दीपावली (लक्ष्मी‑पूजा) | 20 अक्टूबर | मुख्य दिवस: माँ लक्ष्मी व गणेश की पूजा, दीयों से प्रज्ज्वलन, मिठाई व उपहार। |
| 4 | गोवर्धन पूजा / अन्नकूट | 22 अक्टूबर | भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा: प्रसाद व अन्नकूट का आयोजन। |
| 5 | भाई दूज | 23 अक्टूबर | भाई-बहन के बंधन का उत्सव: बहनें भाई की दीर्घायु व शुभ-समृद्धि की कामना करती हैं। |
इस प्रकार, पाँच दिनों की यह यात्रा जीवन के विविध आयामों — धन, आत्म-शुद्धि, भक्ति, कृतज्ञता और पारिवारिक संबंध — को समाहित करती है।
३. 2025 में शुभ मुहूर्त व तिथि-समय
इस वर्ष (2025) के लिए महत्त्वपूर्ण समय एवं तिथि नीचे दिए गए हैं:
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मुख्य दीपावली-दिन: सोमवार, 20 अक्टूबर 2025।
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अमावस्या तिथि (निर्माया चन्द्र-तिथि): 20 अक्टूबर 15:44 PM से 21 अक्टूबर 5:54 AM तक।
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लक्ष्मी-पूजा का उत्तम मुहूर्त: शाम 7:08 PM से 8:18 PM (IST)।
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प्रदोष काल (शुभ पूजा-काल): 5:58 PM से 8:25 PM तक।
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वृषभ-काल (स्थिर लग्न का समय): 7:08 PM से 9:03 PM तक।
इस तरह यह समय-खिड़की पूजा एवं अनुष्ठानों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। यदि इस समय में पूजा संभव न हो सके, तो अधिकृत पंचाङ्ग हेतु स्थानीय वैदिक ज्योतिष या पंडित से सलाह लेनी चाहिए।
४. पूजा-विधि एवं कर्क्रम (कार्यक्रम)
दीपावली पर मुख्य रूप से निम्नलिखित क्रम अपनाया जाता है:
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स्वच्छता एवं सजावट – पूर्वाह्न में घर-परिसर की सफाई, द्वार पर रंगोली तथा फूल, पत्ते व घिस्यें दीप, बैटरी-लाइट्स आदि से सजावट।
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दीयों का प्रज्ज्वलन – सन्ध्याकालीन समय में घर के कोने-कोने व आँगन, बाहर रास्तों पर तेल के दीये या बिजली के लाइट्स जलाए जाते हैं।
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माँ लक्ष्मी व गणेश की स्थापना एवं पूजा
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एक लाल कपड़ा बिछाकर उस पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ/चित्र स्थापित करें।
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अक्षत (अनाज), फूल, फूलों की माला, धूप-दीप, रत्न-मालाएँ, मिठाई व उपहार आदि समर्पित करें।
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लक्ष्मी-सुक्तम, गणेश मंत्र या आरती पढ़ें।
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प्रसाद वितरण एवं आतिशबाजी – पूजा के पश्चात पारिवारिक भोजन, मिठाई वितरण और सुरक्षित आतिशबाजी-आनंद।
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भविष्य की कामना एवं शुभारंभ – घर-व्यापार में नए लेखा-पुस्तकों का शुभारंभ, नए सिरे से आरंभ करना बहुत शुभ माना जाता है।