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पर्यावरण और जैव विविधता: आक्रामक प्रजातियों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

हाल के एक शोध के अनुसार, 1960 के बाद से आक्रामक पौधों और जानवरों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2.2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान पहुंचाया है। यह अनुमान पहले की तुलना में 16 गुना अधिक है, जो आक्रामक प्रजातियों के बढ़ते प्रभाव और उनके प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। आक्रामक प्रजातियाँ वे जीव हैं जो अपने प्राकृतिक आवास से बाहर किसी नए क्षेत्र में प्रवेश करती हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि, और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। यह निबंध आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव, उनके कारण, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उनके प्रभाव को कम करने के उपाय, और भारत के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करता है।

आक्रामक प्रजातियों का परिचय

आक्रामक प्रजातियाँ (Invasive Species) वे पौधे, जानवर, या सूक्ष्मजीव हैं जो मानव गतिविधियों, जैसे व्यापार, यात्रा, या जानबूझकर परिचय के माध्यम से अपने मूल क्षेत्र से बाहर नए क्षेत्रों में फैलते हैं। ये प्रजातियाँ स्थानीय जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकती हैं, क्योंकि वे तेजी से प्रजनन करती हैं, संसाधनों के लिए स्थानीय प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं, और कभी-कभी उन्हें विलुप्त होने की कगार पर धकेल देती हैं। उदाहरण के लिए, ज़ेबरा मसल्स (Zebra Mussels) और जापानी नॉटवीड (Japanese Knotweed) जैसी प्रजातियों ने विश्व स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया है।

हाल के शोध, जैसे कि Nature पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन, ने आक्रामक प्रजातियों के आर्थिक प्रभाव को गहराई से विश्लेषित किया है। इस अध्ययन के अनुसार, 1960 से 2020 तक इन प्रजातियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान पहुंचाया, जो पहले के अनुमानों से 16 गुना अधिक है। यह नुकसान कृषि उत्पादन में कमी, बुनियादी ढांचे को नुकसान, और प्रजातियों के नियंत्रण या उन्मूलन के लिए किए गए खर्च के कारण हुआ है।

आक्रामक प्रजातियों के कारण

आक्रामक प्रजातियों के प्रसार के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. वैश्वीकरण और व्यापार: वैश्विक व्यापार और परिवहन ने आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को तेज किया है। जहाजों के गिट्टी जल (Ballast Water), कंटेनर, और लकड़ी की पैकिंग सामग्री के माध्यम से प्रजातियाँ एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में पहुंचती हैं। उदाहरण के लिए, ज़ेबरा मसल्स जहाजों के गिट्टी जल के माध्यम से उत्तरी अमेरिका में पहुंचे।
  2. मानव गतिविधियाँ: बागवानी, कृषि, और पालतू जानवरों के व्यापार के लिए प्रजातियों को जानबूझकर या अनजाने में नए क्षेत्रों में लाया जाता है। उदाहरण के लिए, लैंटाना (Lantana camara) को सजावटी पौधे के रूप में भारत में लाया गया था, लेकिन यह अब जंगलों और चरागाहों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है।
  3. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन ने आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को बढ़ावा दिया है। गर्म तापमान और बदलते मौसम पैटर्न कुछ प्रजातियों के लिए नए क्षेत्रों में जीवित रहना और प्रजनन करना आसान बनाते हैं।
  4. पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी: मानव गतिविधियों, जैसे वनों की कटाई, शहरीकरण, और प्रदूषण, ने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर किया है, जिससे आक्रामक प्रजातियों के लिए प्रवेश और विस्तार करना आसान हो गया है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

आक्रामक प्रजातियों के वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को निम्नलिखित क्षेत्रों में देखा जा सकता है:

  1. कृषि और खाद्य सुरक्षा: आक्रामक प्रजातियाँ, जैसे कि फॉल आर्मीवर्म (Fall Armyworm), फसलों को नष्ट करती हैं, जिससे खाद्य उत्पादन में कमी आती है। यह किसानों की आय को प्रभावित करता है और खाद्य कीमतों में वृद्धि का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीका और एशिया में फॉल आर्मीवर्म ने मक्का और अन्य फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है।
  2. बुनियादी ढांचा और संपत्ति: कुछ आक्रामक प्रजातियाँ, जैसे टर्माइट्स और जापानी नॉटवीड, इमारतों, सड़कों, और जल आपूर्ति प्रणालियों को नुकसान पहुंचाती हैं। उदाहरण के लिए, जापानी नॉटवीड की जड़ें कंक्रीट संरचनाओं को तोड़ सकती हैं, जिससे मरम्मत की लागत बढ़ती है।
  3. स्वास्थ्य और चिकित्सा खर्च: कुछ आक्रामक प्रजातियाँ, जैसे कि एडीस मच्छर (Aedes Mosquito), डेंगू और जीका जैसे रोगों को फैलाती हैं। इससे स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बोझ बढ़ता है और आर्थिक उत्पादकता कम होती है।
  4. पर्यावरण प्रबंधन लागत: आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करने या हटाने के लिए सरकारों और संगठनों को भारी खर्च करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में खरगोशों और बिल्लियों जैसी आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करने के लिए लाखों डॉलर खर्च किए जाते हैं।
  5. पर्यटन और जैव विविधता हानि: आक्रामक प्रजातियाँ प्राकृतिक स्थानों की सुंदरता और जैव विविधता को नष्ट करती हैं, जिससे पर्यटन उद्योग को नुकसान होता है। उदाहरण के लिए, गैलापागोस द्वीपों में आक्रामक प्रजातियों ने अद्वितीय प्रजातियों को खतरे में डाला है, जिससे पर्यटकों की संख्या प्रभावित हुई है।

भारत के संदर्भ में आक्रामक प्रजातियाँ

भारत, अपनी समृद्ध जैव विविधता के साथ, आक्रामक प्रजातियों से विशेष रूप से प्रभावित है। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  1. लैंटाना (Lantana camara): यह झाड़ी, जो मूल रूप से दक्षिण अमेरिका से आई थी, भारत के जंगलों, चरागाहों, और कृषि क्षेत्रों में फैल गई है। यह स्थानीय पौधों को दबा देती है और चरागाहों को अनुपयोगी बनाती है, जिससे पशुपालकों की आजीविका प्रभावित होती है।
  2. पार्थेनियम (Parthenium hysterophorus): इसे "गाजर घास" के नाम से जाना जाता है। यह एक आक्रामक खरपतवार है जो फसलों को नुकसान पहुंचाता है और मानव स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है, जैसे कि एलर्जी और त्वचा रोग।
  3. जलकुंभी (Water Hyacinth): यह जलीय पौधा भारत के जलाशयों, नदियों, और झीलों में फैल गया है, जिससे मछली पकड़ने और जल परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है। यह जल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
  4. आक्रामक मछलियाँ: तिलापिया और अफ्रीकन कैटफिश जैसी मछलियाँ भारत के जलाशयों में पेश की गई थीं, लेकिन ये स्थानीय मछली प्रजातियों के लिए खतरा बन गई हैं।

भारत में इन प्रजातियों के नियंत्रण के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं, जैसे जैविक नियंत्रण (Biological Control), जिसमें प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग किया जाता है, और यांत्रिक हटाने के तरीके। हालांकि, इन उपायों की लागत और प्रभावशीलता सीमित रही है।

समाधान और भविष्य की रणनीतियाँ

आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:

  1. प्रारंभिक पहचान और निगरानी: आक्रामक प्रजातियों को उनके शुरुआती चरण में पहचानना और उनकी निगरानी करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए उपग्रह इमेजिंग, ड्रोन, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  2. जैविक नियंत्रण: प्राकृतिक शत्रुओं, जैसे कि कीट या परजीवी, का उपयोग करके आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में खरगोशों को नियंत्रित करने के लिए मायक्सोमाटोसिस वायरस का उपयोग किया गया था।
  3. कानूनी और नीतिगत उपाय: वैश्विक व्यापार और परिवहन में सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए, जैसे कि गिट्टी जल का उपचार और आयातित सामग्रियों की जाँच। भारत में जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन के लिए और सख्त नीतियाँ बनाई जा सकती हैं।
  4. सार्वजनिक जागरूकता: स्थानीय समुदायों और किसानों को आक्रामक प्रजातियों के खतरों और उनके नियंत्रण के तरीकों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है।
  5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: आक्रामक प्रजातियों का प्रभाव एक वैश्विक समस्या है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (CBD) जैसे संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं।

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